उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है
मुनीर नियाज़ी
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रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी
गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने
मुनीर नियाज़ी
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धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए
ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए
परवीन शाकिर
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