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आरजू शायरी | शाही शायरी

आरजू

66 शेर

मैं और उस ग़ुंचा-दहन की आरज़ू
आरज़ू की सादगी थी मैं न था

अब्दुल हमीद अदम




मुद्दआ दूर तक गया लेकिन
आरज़ू लौट कर नहीं आई

अब्दुल हमीद अदम




तकमील-ए-आरज़ू से भी होता है ग़म कभी
ऐसी दुआ न माँग जिसे बद-दुआ कहें

अबु मोहम्मद सहर




सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते

अहमद फ़राज़




वो जो रात मुझ को बड़े अदब से सलाम कर के चला गया
उसे क्या ख़बर मिरे दिल में भी कभी आरज़ू-ए-गुनाह थी

अहमद मुश्ताक़




क्या वो ख़्वाहिश कि जिसे दिल भी समझता हो हक़ीर
आरज़ू वो है जो सीने में रहे नाज़ के साथ

अकबर इलाहाबादी




रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास
हाए क्या शय थी बहार-ए-आरज़ू

अख़्तर अंसारी