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आह शायरी | शाही शायरी

आह

17 शेर

मुश्किल है रोक आह-ए-दिल-ए-दाग़दार की
कहते हैं सौ सुनार की और इक लुहार की

सफ़ी औरंगाबादी




आह करता हूँ तो आती है पलट कर ये सदा
आशिक़ों के वास्ते बाब-ए-असर खुलता नहीं

सेहर इश्क़ाबादी




वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
सुना है आज कोई शख़्स मर गया यारो

शहरयार