किनारा कर न ऐ दुनिया मिरी हस्त-ए-ज़बूनी से
कोई दिन में मिरा रौशन सितारा होने वाला है
तारिक़ नईम
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कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में
ख़ुद ही अपने रस्ते की दीवार रहा हूँ
तारिक़ नईम
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कोई कब दीवार बना है मेरे सफ़र में
ख़ुद ही अपने रस्ते की दीवार रहा हूँ
तारिक़ नईम
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रात रो रो के गुज़ारी है चराग़ों की तरह
तब कहीं हर्फ़ में तासीर नज़र आई है
तारिक़ नईम
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तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र में काम आई
मिरे चराग़ तो लगता था रोए अब रोए
तारिक़ नईम
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तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र में काम आई
मिरे चराग़ तो लगता था रोए अब रोए
तारिक़ नईम
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उठा उठा के तिरे नाज़ ऐ ग़म-ए-दुनिया
ख़ुद आप ही तिरी आदत ख़राब की हम ने
तारिक़ नईम
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