याद में अपने यार-ए-जानी की
हम ने मर मर के ज़िंदगानी की
वाजिद अली शाह अख़्तर
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यही तशवीश शब-ओ-रोज़ है बंगाले में
लखनऊ फिर कभी दिखलाए मुक़द्दर मेरा
वाजिद अली शाह अख़्तर