हक़ बात सर-ए-बज़्म भी कहने में तअम्मुल
हक़ बात सर-ए-दार कहो सोचते क्या हो
वाहिद प्रेमी
हम वो रह-रव हैं कि चलना ही है मस्लक जिन का
हम तो ठुकरा दें अगर राह में मंज़िल आए
वाहिद प्रेमी
है शाम-ए-अवध गेसू-ए-दिलदार का परतव
और सुब्ह-ए-बनारस है रुख़-ए-यार का परतव
वाहिद प्रेमी
गुल ग़ुंचे आफ़्ताब शफ़क़ चाँद कहकशाँ
ऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिस में तू न हो
वाहिद प्रेमी
एक मुद्दत से इसी उलझन में हूँ
उन को या ख़ुद को किसे सज्दा करूँ
वाहिद प्रेमी
दिलों में ज़ख़्म होंटों पर तबस्सुम
उसी का नाम तो ज़िंदा-दिली है
वाहिद प्रेमी
बा'द तकलीफ़ के राहत है यक़ीनी 'वाहिद'
रात का आना ही पैग़ाम-ए-सहर होता है
वाहिद प्रेमी
अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे
वो ज़िंदगी है आग का दरिया कहें जिसे
वाहिद प्रेमी
आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ
आई न मगर ताक़त-ए-परवाज़ अभी तक
वाहिद प्रेमी