कहियो सबा सलाम हमारा बहार से
हम तो चमन को छोड़ के सू-ए-क़फ़स चले
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को
पर जो ख़ुदा दिखाए सो नाचार देखना
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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कौन किसी का ग़म खाता है
कहने को ग़म-ख़्वार है दुनिया
मोहम्मद रफ़ी सौदा
किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
ऐ रू-सियाह तुझ से तो ये भी न हो सका
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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किसे ताक़त है शरह-ए-शौक़ उस मज्लिस में करने की
उठा देने के डर से साँस वाँ लेते हैं रह रह के
मोहम्मद रफ़ी सौदा
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