सुना है धूप को घर लौटने की जल्दी है
वो आज वक़्त से पहले ही शाम कर देगी
सदार आसिफ़
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ये बात सच है कि वो ज़िंदगी नहीं मेरी
मगर वो मेरे लिए ज़िंदगी से कम भी नहीं
सदार आसिफ़
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ये कैसे मरहले में फँस गया है मेरा घर मालिक
अगर छत को बचा भी लूँ तो फिर दीवार जाती है
सदार आसिफ़
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