EN اردو
ये झूट है कि बिछड़ने का उस को ग़म भी नहीं | शाही शायरी
ye jhuT hai ki bichhaDne ka usko gham bhi nahin

ग़ज़ल

ये झूट है कि बिछड़ने का उस को ग़म भी नहीं

सदार आसिफ़

;

ये झूट है कि बिछड़ने का उस को ग़म भी नहीं
वो रो रहा है मगर उस की आँख नम भी नहीं

ये बात सच है कि वो ज़िंदगी नहीं मेरी
मगर वो मेरे लिए ज़िंदगी से कम भी नहीं

तुझे पता ही नहीं मेरी राह कैसी है
तू चल सकेगा मिरे साथ दो क़दम भी नहीं

ये क्या कि लगता है अब सब को ख़ाली ख़ाली सा
मिरे अलावा कोई चीज़ घर में कम भी नहीं

मैं तुझ से झुक के मिला हूँ मगर ये ध्यान रहे
बड़ा नहीं हूँ मगर तुझ से क़द में कम भी नहीं

शनाख़्त उस की अलग है मिरा वजूद अलग
जुदा भी मुझ से नहीं है वो मुझ में ज़म भी नहीं