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सहर अंसारी शायरी | शाही शायरी

सहर अंसारी शेर

16 शेर

न अब वो शिद्दत-ए-आवारगी न वहशत-ए-दिल
हमारे नाम की कुछ और शोहरतें भी गईं

सहर अंसारी




सदा अपनी रविश अहल-ए-ज़माना याद रखते हैं
हक़ीक़त भूल जाते हैं फ़साना याद रखते हैं

सहर अंसारी




शायद कि वो वाक़िफ़ नहीं आदाब-ए-सफ़र से
पानी में जो क़दमों के निशाँ ढूँड रहा था

सहर अंसारी




शिकवा-ए-तलख़ी-ए-हालात बजा है लेकिन
इस पे रोता हूँ कि मैं ने भी रुलाया है तुझे

सहर अंसारी




तंग आते भी नहीं कशमकश-ए-दहर से लोग
क्या तमाशा है कि मरते भी नहीं ज़हर से लोग

सहर अंसारी




तिरी आरज़ू से भी क्यूँ नहीं ग़म-ए-ज़िंदगी में कोई कमी
ये सवाल वो है कि जिस का अब कोई इक जवाब नहीं रहा

सहर अंसारी




ये मरना जीना भी शायद मजबूरी की दो लहरें हैं
कुछ सोच के मरना चाहा था कुछ सोच के जीना चाहा है

सहर अंसारी