ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
गहरे समुंदरों में सफ़र कर रहे हैं हम
रईस अमरोहवी
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किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्म
कौन उतरा है तिरे क़ल्ब की गहराई में
रईस अमरोहवी
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पहले भी ख़राब थी ये दुनिया
अब और ख़राब हो गई है
रईस अमरोहवी
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पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े
अब ये शिकवा कि शराफ़त ने कहीं का न रखा
रईस अमरोहवी
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सदियों तक एहतिमाम-ए-शब-ए-हिज्र में रहे
सदियों से इंतिज़ार-ए-सहर कर रहे हैं हम
रईस अमरोहवी
सिर्फ़ तारीख़ की रफ़्तार बदल जाएगी
नई तारीख़ के वारिस यही इंसाँ होंगे
रईस अमरोहवी
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टहनी पे ख़मोश इक परिंदा
माज़ी के उलट रहा है दफ़्तर
रईस अमरोहवी
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