वो लहू पी कर बड़े अंदाज़ से कहता है ये
ग़म का हर तूफ़ान उस के घर के बाहर आएगा
ओवेस अहमद दौराँ
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ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं मक़्तल है रफ़ीक़ो!
हर शाख़ है तलवार यहाँ, जागते रहना
ओवेस अहमद दौराँ
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ये ज़ीस्त कि है फूल सी मिट जाए बला से
गुलचीं से मगर बर-सर-ए-पैकार ही रहिए
ओवेस अहमद दौराँ
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