चुप रहोगे तो ज़माना इस से बद-तर आएगा
आने वाला दिन लिए हाथों में ख़ंजर आएगा
वो लहू पी कर बड़े अंदाज़ से कहता है ये
ग़म का हर तूफ़ान उस के घर के बाहर आएगा
क्या तमाशा है डरे सहमे हुए हैं सारे लोग
क्या मिरी बस्ती में कोई ज़ालिम अफ़सर आएगा
लौट कर पीछे कभी जाती नहीं रफ़्तार-ए-वक़्त
ज़िंदगी को अब मिटाने कौन ख़ुद-सर आएगा
मैं हूँ उस बज़्म-ए-हसीं का मुद्दतों से मुंतज़िर
सब के हाथों में जहाँ लबरेज़ साग़र आएगा
तुम इसी वादी में ठहरो इंतिज़ार उस का करो
वो तुम्हारे पास इक पैग़ाम ले कर आएगा
कूचा कूचा से उठेगी ग़म-ज़दों की एक लहर
क़र्या क़र्या से बही-ख़्वाहों का लश्कर आएगा
हाथ में मिशअल लिए हर सम्त पहरे पर रहो
रात की चादर लपेटे हमला-आवर आएगा
देख ऐ सय्याह मेरे देस की उजड़ी बहार
इस से बढ़ कर भी कोई ग़मगीन मंज़र आएगा
मेरी सुर्ख़ी-ए-तसव्वुर से हैं क्यूँ नाराज़ आप
क्या हरा पेड़ आप तक भी फूल ले कर आएगा
ढल चली 'दौराँ' जवानी की चमकती दोपहर
अब भला पहलू में मेरे कौन दिलबर आएगा
ग़ज़ल
चुप रहोगे तो ज़माना इस से बद-तर आएगा
ओवेस अहमद दौराँ