रास्ता रोके हुए कब से खड़ी है दुनिया
न इधर होती है ज़ालिम न उधर होती है
नज़ीर बनारसी
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उम्र भर की बात बिगड़ी इक ज़रा सी बात में
एक लम्हा ज़िंदगी भर की कमाई खा गया
नज़ीर बनारसी
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वो आइना हूँ जो कभी कमरे में सजा था
अब गिर के जो टूटा हूँ तो रस्ते में पड़ा हूँ
नज़ीर बनारसी
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ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
मिरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी
नज़ीर बनारसी
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ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें
ज़िंदगी दो दिन की है दो दिन में हम क्या क्या करें
नज़ीर बनारसी
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