साथ चलना है तो फिर छोड़ दे सारी दुनिया
चल न पाए तो मुझे लौट के घर जाने दे
नज़ीर बाक़री
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ता उम्र फिर न होगी उजालों की आरज़ू
तू भी किसी चराग़ की लौ से लिपट के देख
नज़ीर बाक़री
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ज़ख़्म कितने तिरी चाहत से मिले हैं मुझ को
सोचता हूँ कि कहूँ तुझ से मगर जाने दे
नज़ीर बाक़री
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