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कुछ देर सादगी के तसव्वुर से हट के देख | शाही शायरी
kuchh der sadgi ke tasawwur se haT ke dekh

ग़ज़ल

कुछ देर सादगी के तसव्वुर से हट के देख

नज़ीर बाक़री

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कुछ देर सादगी के तसव्वुर से हट के देख
लिक्खा हुआ वरक़ हूँ मुझे फिर उलट के देख

माना कि तुझ से कोई तअल्लुक़ नहीं मगर
इक बार दुश्मनों की तरह ही पलट के देख

फिर पूछना कि कैसे भटकती है ज़िंदगी
पहले किसी पतंग की मानिंद कट के देख

ता उम्र फिर न होगी उजालों की आरज़ू
तू भी किसी चराग़ की लौ से लिपट के देख

सज्दे तुझे करेगी किसी रोज़ ख़ुद हयात
बाँहों में हादसात-ए-जहाँ की सिमट के देख

तन्हाइयों में सैकड़ों साथी भी हैं 'नज़ीर'
है शर्त अपनी ज़ात के हिस्सों में बट के देख