परसों मैं बाज़ार गया था दर्पन लेने की ख़ातिर
क्या बोलूँ दूकान पे ही मैं शर्म के मारे गड़ बैठा
नवीन सी. चतुर्वेदी
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प्यास को प्यार करना था केवल
एक अक्षर बदल न पाए हम
नवीन सी. चतुर्वेदी
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