बिखरा बिखरा सा साज़-ओ-सामाँ है
हम कहीं दिल कहीं अक़ीदा कहीं
मुस्तफ़ा शहाब
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बिछड़ा वो मुझ से ऐसे न बिछड़े कभी कोई
अब यूँ मिला है जैसे वो पहले मिला न हो
मुस्तफ़ा शहाब
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अपनी कश्ती सर पे रख कर चल रहे हैं हम 'शहाब'
ये भी मुमकिन है कि अगले मोड़ पर दरिया मिले
मुस्तफ़ा शहाब
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