जो ख़स-ए-बदन था जला बहुत कई निकहतों की तलाश में
मैं तमाम लोगों से मिल चुका तिरी क़ुर्बतों की तलाश में
मुसव्विर सब्ज़वारी
आँखें यूँ बरसीं पैराहन भीग गया
तेरे ध्यान में सारा सावन भीग गया
मुसव्विर सब्ज़वारी
इसी उमीद पे जलती हैं दश्त दश्त आँखें
कभी तो आएगा उम्र-ए-ख़राब काट के वो
मुसव्विर सब्ज़वारी
हिसार-ए-गोश-ए-समाअत की दस्तरस में कहाँ
तू वो सदा जो फ़क़त जिस्म को सुनाई दे
मुसव्विर सब्ज़वारी
हमारे बीच में इक और शख़्स होना था
जो लड़ पड़े तो कोई भी नहीं मनाने का
मुसव्विर सब्ज़वारी
गुज़रते पत्तों की चाप होगी तुम्हारे सेहन-ए-अना के अंदर
फ़सुर्दा यादों की बारिशें भी मुझे भुलाने के बाद होंगी
मुसव्विर सब्ज़वारी
फ़ैसला थे वक़्त का फिर बे-असर कैसे हुए
सच की पेशानी पे हम झूटी ख़बर कैसे हुए
मुसव्विर सब्ज़वारी
देख वो दश्त की दीवार है सब का मक़्तल
इस बरस जाऊँगा मैं अगले बरस जाएगा तू
मुसव्विर सब्ज़वारी
अज़ाबों से टपकती ये छतें बरसों चलेंगी
अभी से क्यूँ मकीं मसरूफ़-ए-मातम हो गए हैं
मुसव्विर सब्ज़वारी