हमारी तहरीरें वारदातें बहुत ज़माने के बाद होंगी
रवाँ ये बे-हिस उदास नहरें हमारे जाने के बाद होंगी
खिंची हुई हैं उफ़ुक़ से दिल तक अलामत-ए-वस्ल की लकीरें
मगर ये ज़िंदा कई क़बीलों का ख़ूँ बहाने के बाद होंगी
तलब के मौसम गँवाए मैं ने कमाल-ए-ग़म से धुआँ धुआँ तुम
शिकायतें ये कड़े महाज़ों से लौट आने के बाद होंगी
गुज़रते पत्तों की चाप होगी तुम्हारे सेहन-ए-अना के अंदर
फ़सुर्दा यादों की बारिशें भी मुझे भुलाने के बाद होंगी
लरज़ती पलकों की चिलमनों पर नहीं सितारा भी पिछली शब का
कहा था तुम ने कि चाँद रातें तुम्हारे आने के बाद होंगी
ज़मीन पैरों से निकलेगी जब खुलेंगे सब भेद साहिलों के
रिहाइशों की शराइत अब कश्तियाँ जलाने के बाद होंगी
ग़ज़ल
हमारी तहरीरें वारदातें बहुत ज़माने के बाद होंगी
मुसव्विर सब्ज़वारी