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मोमिन ख़ाँ मोमिन शायरी | शाही शायरी

मोमिन ख़ाँ मोमिन शेर

60 शेर

आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ

मोमिन ख़ाँ मोमिन




अब शोर है मिसाल-ए-जूदी इस ख़िराम को
यूँ कौन जानता था क़यामत के नाम को

मोमिन ख़ाँ मोमिन




बहर-ए-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
दम ही निकल गया मिरा आवाज़-ए-पा के साथ

मोमिन ख़ाँ मोमिन




बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
जीना विसाल में भी तो हिज्राँ से कम न था

मोमिन ख़ाँ मोमिन




चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं
सो तुम्हारे सिवा नहीं होता

मोमिन ख़ाँ मोमिन




चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से 'मोमिन'
जब दिया रंज बुतों ने तो ख़ुदा याद आया

from the streets of idols fair
to the mosque did I repai

मोमिन ख़ाँ मोमिन




डरता हूँ आसमान से बिजली न गिर पड़े
सय्याद की निगाह सू-ए-आशियाँ नहीं

मोमिन ख़ाँ मोमिन




धो दिया अश्क-ए-नदामत ने गुनाहों को मिरे
तर हुआ दामन तो बारे पाक दामन हो गया

मोमिन ख़ाँ मोमिन




दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
देर तलक वो मुझे देखा किया

मोमिन ख़ाँ मोमिन