तुम आ गए हो तो मुझ को ज़रा सँभलने दो
अभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
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तुम आ गए हो तुम मुझ को ज़रा सँभलने दो
अभी तो नश्शा सा आँखों में इंतिज़ार का है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
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उस का तरकश ख़ाली होने वाला है
मेरे नाम का तीर है कितने तीरों में
मोहम्मद अहमद रम्ज़
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