बहुत दिनों से हूँ आमद का अपनी चश्म-ब-राह
तुम्हारा ले गया ऐ यार इंतिज़ार कहाँ
किशन कुमार वक़ार
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अश्क-ए-हसरत है आज तूफ़ाँ-ख़ेज़
कश्ती-ए-चश्म की तबाही है
किशन कुमार वक़ार
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आतिशीं हुस्न क्यूँ दिखाते हो
दिल है आशिक़ का कोह-ए-तूर नहीं
किशन कुमार वक़ार
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