महसूस हो रहा है कि मैं ख़ुद सफ़र में हूँ
जिस दिन से रेल पर मैं तुझे छोड़ने गया
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
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सर्द जज़्बे बुझे बुझे चेहरे
जिस्म ज़िंदा हैं मर गए चेहरे
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
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तन्हाई की दुल्हन अपनी माँग सजाए बैठी है
वीरानी आबाद हुई है उजड़े हुए दरख़्तों में
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
तन्हाइयों को सौंप के तारीकियों का ज़हर
रातों को भाग आए हम अपने मकान से
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
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वो ख़ुद ही अपनी आग में जल कर फ़ना हुआ
जिस साए की तलाश में ये आफ़्ताब है
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
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