क़तरा न हो तो बहर न आए वजूद में
पानी की एक बूँद समुंदर से कम नहीं
जुनैद हज़ीं लारी
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रुकी रुकी सी है बरसात ख़ुश्क है सावन
ये और बात कि मौसम यही नुमू का है
जुनैद हज़ीं लारी
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तिरी तलाश में निकले तो इतनी दूर गए
कि हम से तय न हुए फ़ासले जुदाई के
जुनैद हज़ीं लारी
उदासियाँ हैं जो दिन में तो शब में तन्हाई
बसा के देख लिया शहर-ए-आरज़ू मैं ने
जुनैद हज़ीं लारी
उसी को दश्त-ए-ख़िज़ाँ ने किया बहुत पामाल
जो फूल सब से हसीं मौसम-ए-बहार में था
जुनैद हज़ीं लारी
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वो सादगी में भी है अजब दिलकशी लिए
इस वास्ते हम उस की तमन्ना में जी लिए
जुनैद हज़ीं लारी
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