क्या कहानी को इसी मोड़ प रुकना होगा
रौशनी है न समुंदर है न बरसातें हैं
जावेद नासिर
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रात आ जाए तो फिर तुझ को पुकारूँ या-रब
मेरी आवाज़ उजाले में बिखर जाती है
जावेद नासिर
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उठ उठ के आसमाँ को बताती है धूल क्यूँ
मिट्टी में दफ़्न हो गए कितने सदफ़ यहाँ
जावेद नासिर
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