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दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है | शाही शायरी
dur hote hue qadmon ki KHabar jati hai

ग़ज़ल

दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है

जावेद नासिर

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दूर होते हुए क़दमों की ख़बर जाती है
ख़ुश्क पत्ते को लिए गर्द-ए-सफ़र जाती है

पास आते हुए लम्हात पिघल जाते हैं
अब तो हर चीज़ दबे पाँव गुज़र जाती है

रात आ जाए तो फिर तुझ को पुकारूँ या-रब
मेरी आवाज़ उजाले में बिखर जाती है

दोस्तो तुम से गुज़ारिश है यहाँ मत आओ
इस बड़े शहर में तन्हाई भी मर जाती है