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इस्माइल मेरठी शायरी | शाही शायरी

इस्माइल मेरठी शेर

55 शेर

कुछ न बन आएगी जब लूट मचाएगी ख़िज़ाँ
ग़ुंचा हर-चंद गिरह कस के ज़र-ए-गुल बाँधे

इस्माइल मेरठी