फ़स्ल-ए-गुल में भी दिखाता है ख़िज़ाँ-दीदा-दरख़्त
टूट कर देने पे आए तो घटा जैसा भी है
इफ़्तिख़ार नसीम
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दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में
बादल तमाम शहर से बाहर बरस गया
इफ़्तिख़ार नसीम
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बहती रही नदी मिरे घर के क़रीब से
पानी को देखने के लिए मैं तरस गया
इफ़्तिख़ार नसीम
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