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इफ़्तिख़ार नसीम शायरी | शाही शायरी

इफ़्तिख़ार नसीम शेर

21 शेर

ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे
जैसे थे लोग वैसा ही होना पड़ा मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम




अगरचे फूल ये अपने लिए ख़रीदे हैं
कोई जो पूछे तो कह दूँगा उस ने भेजे हैं

इफ़्तिख़ार नसीम




जिस घड़ी आया पलट कर इक मिरा बिछड़ा हुआ
आम से कपड़ों में था वो फिर भी शहज़ादा लगा

इफ़्तिख़ार नसीम




जी में ठानी है कि जीना है बहर-हाल मुझे
जिस को मरना है वो चुप-चाप ही मरता जाए

इफ़्तिख़ार नसीम




इस क़दर भी तो न जज़्बात पे क़ाबू रक्खो
थक गए हो तो मिरे काँधे पे बाज़ू रक्खो

इफ़्तिख़ार नसीम




हज़ार तल्ख़ हों यादें मगर वो जब भी मिले
ज़बाँ पे अच्छे दिनों का ही ज़ाइक़ा रखना

इफ़्तिख़ार नसीम




ग़ैर हो कोई तो उस से खुल के बातें कीजिए
दोस्तों का दोस्तों से ही गिला अच्छा नहीं

इफ़्तिख़ार नसीम




फ़स्ल-ए-गुल में भी दिखाता है ख़िज़ाँ-दीदा-दरख़्त
टूट कर देने पे आए तो घटा जैसा भी है

इफ़्तिख़ार नसीम




दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में
बादल तमाम शहर से बाहर बरस गया

इफ़्तिख़ार नसीम