EN اردو
हनीफ़ अख़गर शायरी | शाही शायरी

हनीफ़ अख़गर शेर

32 शेर

देखिए रुस्वा न हो जाए कहीं कार-ए-जुनूँ
अपने दीवाने को इक पत्थर तो मारे जाइए

हनीफ़ अख़गर




बे-शक असीर-ए-गेसू-ए-जानाँ हैं बे-शुमार
है कोई इश्क़ में भी गिरफ़्तार देखना

हनीफ़ अख़गर




बज़्म को रंग-ए-सुख़न मैं ने दिया है 'अख़्गर'
लोग चुप चुप थे मिरी तर्ज़-ए-नवा से पहले

हनीफ़ अख़गर




अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत
नक़ाब उलट कर वो आ गए हैं तो आइने गुनगुना रहे हैं

हनीफ़ अख़गर




आँखों में जल रहे थे दिए ए'तिबार के
एहसास-ए-ज़ुल्मत-ए-शब-ए-हिज्राँ नहीं रहा

हनीफ़ अख़गर