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हनीफ़ अख़गर शायरी | शाही शायरी

हनीफ़ अख़गर शेर

32 शेर

जो है ताज़गी मिरी ज़ात में वही ज़िक्र-ओ-फ़िक्र-ए-चमन में है
कि वजूद मेरा कहीं भी हो मिरी रूह मेरे वतन में है

हनीफ़ अख़गर




जब भी उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की हवा आती है
हम तो ख़ुशबू की तरह घर से निकल जाते हैं

हनीफ़ अख़गर




इज़हार पे भारी है ख़मोशी का तकल्लुम
हर्फ़ों की ज़बाँ और है आँखों की ज़बाँ और

हनीफ़ अख़गर




इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा
आग में जैसे समुंदर देखा

हनीफ़ अख़गर




हसीन सूरत हमें हमेशा हसीं ही मालूम क्यूँ न होती
हसीन अंदाज़-ए-दिल-नवाज़ी हसीन-तर नाज़ बरहमी का

हनीफ़ अख़गर




हर-चंद हमा-गीर नहीं ज़ौक़-ए-असीरी
हर पाँव में ज़ंजीर है मैं देख रहा हूँ

हनीफ़ अख़गर




हर तरफ़ हैं ख़ाना-बर्बादी के मंज़र बे-शुमार
कुछ ठिकाना है भला इस जज़्बा-ए-तामीर का

हनीफ़ अख़गर




फ़ुक़दान-ए-उरूज-ए-रसन-ओ-दार नहीं है
मंसूर बहुत हैं लब-ए-इज़हार नहीं है

हनीफ़ अख़गर




देखो हमारी सम्त कि ज़िंदा हैं हम अभी
सच्चाइयों की आख़िरी पहचान की तरह

हनीफ़ अख़गर