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हनीफ़ अख़गर शायरी | शाही शायरी

हनीफ़ अख़गर शेर

32 शेर

हसीन सूरत हमें हमेशा हसीं ही मालूम क्यूँ न होती
हसीन अंदाज़-ए-दिल-नवाज़ी हसीन-तर नाज़ बरहमी का

हनीफ़ अख़गर




आइने में है फ़क़त आप का अक्स
आइना आप की सूरत तो नहीं

हनीफ़ अख़गर




हर तरफ़ हैं ख़ाना-बर्बादी के मंज़र बे-शुमार
कुछ ठिकाना है भला इस जज़्बा-ए-तामीर का

हनीफ़ अख़गर




फ़ुक़दान-ए-उरूज-ए-रसन-ओ-दार नहीं है
मंसूर बहुत हैं लब-ए-इज़हार नहीं है

हनीफ़ अख़गर




देखो हमारी सम्त कि ज़िंदा हैं हम अभी
सच्चाइयों की आख़िरी पहचान की तरह

हनीफ़ अख़गर




देखिए रुस्वा न हो जाए कहीं कार-ए-जुनूँ
अपने दीवाने को इक पत्थर तो मारे जाइए

हनीफ़ अख़गर




बे-शक असीर-ए-गेसू-ए-जानाँ हैं बे-शुमार
है कोई इश्क़ में भी गिरफ़्तार देखना

हनीफ़ अख़गर




बज़्म को रंग-ए-सुख़न मैं ने दिया है 'अख़्गर'
लोग चुप चुप थे मिरी तर्ज़-ए-नवा से पहले

हनीफ़ अख़गर




अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत
नक़ाब उलट कर वो आ गए हैं तो आइने गुनगुना रहे हैं

हनीफ़ अख़गर