उस से न मिलिए जिस से मिले दिल तमाम उम्र
सूझी हमें भी हिज्र में आख़िर को दूर की
ग़ुलाम मौला क़लक़
वाइ'ज़ ने मय-कदे को जो देखा तो जल गया
फैला गया चराँद शराब-ए-तहूर की
ग़ुलाम मौला क़लक़
वाइ'ज़ ये मय-कदा है न मस्जिद कि इस जगह
ज़िक्र-ए-हलाल पर भी है फ़तवा हराम का
ग़ुलाम मौला क़लक़
वो संग-दिल अंगुश्त-ब-दंदाँ नज़र आवे
ऐसा कोई सदमा मिरी जाँ पर नहीं होता
ग़ुलाम मौला क़लक़
वो ज़िक्र था तुम्हारा जो इंतिहा से गुज़रा
ये क़िस्सा है हमारा जो ना-तमाम निकला
ग़ुलाम मौला क़लक़
ज़हे क़िस्मत कि उस के क़ैदियों में आ गए हम भी
वले शोर-ए-सलासिल में है इक खटका रिहाई का
ग़ुलाम मौला क़लक़
ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरीं
सभी मजबूर हैं दिल से मोहब्बत आ ही जाती है
ग़ुलाम मौला क़लक़
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है
क्या बानी-ए-इस्लाम भी ग़ारत-गर-ए-दीं था
ग़ुलाम मौला क़लक़
अम्न और तेरे अहद में ज़ालिम
किस तरह ख़ाक-ए-रहगुज़र बैठे
ग़ुलाम मौला क़लक़