फ़ज़ा का तंग होना फ़ितरत-ए-आज़ाद से पूछो
पर-ए-पर्वाज़ ही क्या जो क़फ़स को आशियाँ समझे
फ़िगार उन्नावी
आदाब-ए-आशिक़ी से तो हम बे-ख़बर न थे
दीवाने थे ज़रूर मगर इस क़दर न थे
फ़िगार उन्नावी
दिल मिरा शाकी-ए-जफ़ा न हुआ
ये वफ़ादार बेवफ़ा न हुआ
फ़िगार उन्नावी
दिल की बुनियाद पे ता'मीर कर ऐवान-ए-हयात
क़स्र-ए-शाही तो ज़रा देर में ढह जाते हैं
फ़िगार उन्नावी
दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल
नज़रों में अभी जाम है अंजाम नहीं है
फ़िगार उन्नावी
दिल चोट सहे और उफ़ न करे ये ज़ब्त की मंज़िल है लेकिन
साग़र टूटे आवाज़ न हो ऐसा तो बहुत कम होता है
फ़िगार उन्नावी
दीवाने को मजाज़-ओ-हक़ीक़त से क्या ग़रज़
दैर-ओ-हरम मिले न मिले तेरा दर मिले
फ़िगार उन्नावी
छुप गया दिन क़दम बढ़ा राही
दूर मंज़िल है मुफ़्त रात न कर
फ़िगार उन्नावी
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है
कोई कहता है मोती है कोई कहता है पानी है
फ़िगार उन्नावी