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फ़िगार उन्नावी शायरी | शाही शायरी

फ़िगार उन्नावी शेर

33 शेर

आदाब-ए-आशिक़ी से तो हम बे-ख़बर न थे
दीवाने थे ज़रूर मगर इस क़दर न थे

फ़िगार उन्नावी




अजीब कश्मकश है कैसे हर्फ़-ए-मुद्दआ कहूँ
वो पूछते हैं हाल-ए-दिल मैं सोचता हूँ क्या कहूँ

फ़िगार उन्नावी




ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है
कोई कहता है मोती है कोई कहता है पानी है

फ़िगार उन्नावी




छुप गया दिन क़दम बढ़ा राही
दूर मंज़िल है मुफ़्त रात न कर

फ़िगार उन्नावी




दीवाने को मजाज़-ओ-हक़ीक़त से क्या ग़रज़
दैर-ओ-हरम मिले न मिले तेरा दर मिले

फ़िगार उन्नावी




दिल चोट सहे और उफ़ न करे ये ज़ब्त की मंज़िल है लेकिन
साग़र टूटे आवाज़ न हो ऐसा तो बहुत कम होता है

फ़िगार उन्नावी




दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल
नज़रों में अभी जाम है अंजाम नहीं है

फ़िगार उन्नावी




दिल की बुनियाद पे ता'मीर कर ऐवान-ए-हयात
क़स्र-ए-शाही तो ज़रा देर में ढह जाते हैं

फ़िगार उन्नावी




दिल मिरा शाकी-ए-जफ़ा न हुआ
ये वफ़ादार बेवफ़ा न हुआ

फ़िगार उन्नावी