सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं
दर्द भी सूरत-ए-हालात बता देता है
बक़ा बलूच
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तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
मैं तिरी याद में जलता हूँ
बक़ा बलूच
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ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
आदमी से आदमी बरहम रहा
बक़ा बलूच
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