अजीब लुत्फ़ था नादानियों के आलम में
समझ में आईं तो बातों का वो मज़ा भी गया
अनवर मसूद
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ऐ दिल-ए-नादाँ किसी का रूठना मत याद कर
आन टपकेगा कोई आँसू भी इस झगड़े के बीच
अनवर मसूद
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आस्तीनों की चमक ने हमें मारा 'अनवर'
हम तो ख़ंजर को भी समझे यद-ए-बैज़ा होगा
अनवर मसूद
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आसमाँ अपने इरादों में मगन है लेकिन
आदमी अपने ख़यालात लिए फिरता है
अनवर मसूद
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आँखें भी हैं रस्ता भी चराग़ों की ज़िया भी
सब कुछ है मगर कुछ भी सुझाई नहीं देता
अनवर मसूद
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