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अंजुम सलीमी शायरी | शाही शायरी

अंजुम सलीमी शेर

72 शेर

चख रहा था मैं इक बदन का नमक
सारे बर्तन खुले पड़े हुए थे

अंजुम सलीमी




हर तरफ़ तू नज़र आता है जिधर जाता हूँ
तेरे इम्कान से हिजरत नहीं कर सकता मैं

अंजुम सलीमी




हाँ ज़माने की नहीं अपनी तो सुन सकता था
काश ख़ुद को ही कभी बैठ के समझाता मैं

अंजुम सलीमी




एक ताबीर की सूरत नज़र आई है इधर
सो उठा लाया हूँ सब ख़्वाब पुराने वाले

अंजुम सलीमी




एक दिन मेरी ख़ामुशी ने मुझे
लफ़्ज़ की ओट से इशारा किया

अंजुम सलीमी




एक बे-नाम उदासी से भरा बैठा हूँ
आज दिल खोल के रोने की ज़रूरत है मुझे

अंजुम सलीमी




दोस्तो मेरे लिए कोई भी अफ़्सुर्दा न हो
ख़ुश-दिली से दम-ए-रुख़्सत मुझे रुख़्सत किया जाए

अंजुम सलीमी




दर्द से भरता रहा ज़ात के ख़ाली-पन को
थोड़ा थोड़ा यूँही भरपूर किया मैं ने मुझे

अंजुम सलीमी




चल तो सकता था मैं भी पानी पर
मैं ने दरिया का एहतिराम किया

अंजुम सलीमी