गुफ़्तुगू के ख़त्म हो जाने पर आया ये ख़याल
जो ज़बाँ तक आ नहीं पाया वही तो दिल में था
अली जव्वाद ज़ैदी
आँखों में लिए जल्वा-ए-नैरंग-ए-तमाशा
आई है ख़िज़ाँ जश्न-ए-बहाराँ से गुज़र के
अली जव्वाद ज़ैदी
एक तुम्हारी याद ने लाख दिए जलाए हैं
आमद-ए-शब के क़ब्ल भी ख़त्म-ए-सहर के बाद भी
अली जव्वाद ज़ैदी
दिल में जो दर्द है वो निगाहों से है अयाँ
ये बात और है न कहें कुछ ज़बाँ से हम
अली जव्वाद ज़ैदी
दिल का लहू निगाह से टपका है बार-हा
हम राह-ए-ग़म में ऐसी भी मंज़िल से आए हैं
अली जव्वाद ज़ैदी
दिखा दी मैं ने वो मंज़िल जो इन दोनों के आगे है
परेशाँ हैं कि आख़िर अब कहें क्या कुफ़्र ओ दीं मुझ से
अली जव्वाद ज़ैदी
दयार-ए-सज्दा में तक़लीद का रिवाज भी है
जहाँ झुकी है जबीं उन का नक़्श-ए-पा तो नहीं
अली जव्वाद ज़ैदी
ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
ज़िंदगी इक हसीन संगम है
अली जव्वाद ज़ैदी
अब न वो शोरिश-ए-रफ़्तार न वो जोश-ए-जुनूँ
हम कहाँ फँस गए यारान-ए-सुबुक-गाम के साथ
अली जव्वाद ज़ैदी