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अजय सहाब शायरी | शाही शायरी

अजय सहाब शेर

15 शेर

काश लौटें मिरे पापा भी खिलौने ले कर
काश फिर से मिरे हाथों में ख़ज़ाना आए

अजय सहाब




किस ने बेचा नहीं सुख़न अपना
कौन बाज़ार तक नहीं पहुँचा

अजय सहाब




पेड़ को अपना ही साया नहीं मिलता लोगो
फ़स्ल अपनी कभी पाते नहीं बोने वाले

अजय सहाब




शायद ज़बाँ पे क़र्ज़ था हम ने चुका दिया
ख़ामोश हो गए हैं तुझे हम पुकार के

अजय सहाब




वो रेत पर इक निशान जैसा था मोम के इक मकान जैसा
बड़ा सँभल कर छुआ था मैं ने प एक पल में बिखर गया वो

अजय सहाब




यूँ अबस किसी को सदा न दो दिल-ए-ज़ार को ये बता भी दो
कभी अब न आएँगे लौट कर वो जो एक बार चले गए

अजय सहाब