काश लौटें मिरे पापा भी खिलौने ले कर
काश फिर से मिरे हाथों में ख़ज़ाना आए
अजय सहाब
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किस ने बेचा नहीं सुख़न अपना
कौन बाज़ार तक नहीं पहुँचा
अजय सहाब
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पेड़ को अपना ही साया नहीं मिलता लोगो
फ़स्ल अपनी कभी पाते नहीं बोने वाले
अजय सहाब
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शायद ज़बाँ पे क़र्ज़ था हम ने चुका दिया
ख़ामोश हो गए हैं तुझे हम पुकार के
अजय सहाब
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वो रेत पर इक निशान जैसा था मोम के इक मकान जैसा
बड़ा सँभल कर छुआ था मैं ने प एक पल में बिखर गया वो
अजय सहाब
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यूँ अबस किसी को सदा न दो दिल-ए-ज़ार को ये बता भी दो
कभी अब न आएँगे लौट कर वो जो एक बार चले गए
अजय सहाब
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