गुंजाइश-ए-अफ़्सोस निकल आती है हर रोज़ 
मसरूफ़ नहीं रहता हूँ फ़ुर्सत के बराबर
अबरार अहमद
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                गो फ़रामोशी की तकमील हुआ चाहती है 
फिर भी कह दो कि हमें याद वो आया न करे
अबरार अहमद
फ़िराक़ ओ वस्ल से हट कर कोई रिश्ता हमारा है 
कि उस को छोड़ पाता हूँ न उस को थाम रखता हूँ
अबरार अहमद
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                ढंग के एक ठिकाने के लिए 
घर-का-घर नक़्ल-ए-मकानी में रहा
अबरार अहमद
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