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अबरार अहमद शायरी | शाही शायरी

अबरार अहमद शेर

22 शेर

गुंजाइश-ए-अफ़्सोस निकल आती है हर रोज़
मसरूफ़ नहीं रहता हूँ फ़ुर्सत के बराबर

अबरार अहमद




गो फ़रामोशी की तकमील हुआ चाहती है
फिर भी कह दो कि हमें याद वो आया न करे

अबरार अहमद




फ़िराक़ ओ वस्ल से हट कर कोई रिश्ता हमारा है
कि उस को छोड़ पाता हूँ न उस को थाम रखता हूँ

अबरार अहमद




ढंग के एक ठिकाने के लिए
घर-का-घर नक़्ल-ए-मकानी में रहा

अबरार अहमद