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अब्दुर रऊफ़ उरूज शायरी | शाही शायरी

अब्दुर रऊफ़ उरूज शेर

5 शेर

ख़मोशी मेरी लय में गुनगुनाना चाहती है
किसी से बात करने का बहाना चाहती है

अब्दुर रऊफ़ उरूज




नफ़स के लोच को ख़ंजर बनाना चाहती है
मोहब्बत अपनी तेज़ी आज़माना चाहती है

अब्दुर रऊफ़ उरूज




ये तबस्सुम का उजाला ये निगाहों की सहर
लोग यूँ भी तो छुपाते हैं अंधेरे दिल में

अब्दुर रऊफ़ उरूज




ज़िंदगी अज़्मत-ए-हाज़िर के बग़ैर
इक तसलसुल है मगर ख़्वाबों का

अब्दुर रऊफ़ उरूज




ज़ुल्मतें वहशत-ए-फ़र्दा से निढाल
ढूँढती फिरती हैं घर ख़्वाबों का

अब्दुर रऊफ़ उरूज