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Khud-aziyyati शायरी | शाही शायरी

Khud-aziyyati

4 शेर

किया है चाक दिल तेग़-ए-तग़ाफ़ुल सीं तुझ अँखियों नीं
निगह के रिश्ता ओ सोज़न सूँ पलकाँ के रफ़ू कीजे

आबरू शाह मुबारक




सफ़र में हर क़दम रह रह के ये तकलीफ़ ही देते
बहर-सूरत हमें इन आबलों को फोड़ देना था

अंजुम इरफ़ानी




न रहा कोई तार दामन में
अब नहीं हाजत-ए-रफ़ू मुझ को

इक़बाल सुहैल




ऐसा करूँगा अब के गरेबाँ को तार तार
जो फिर किसी तरह से किसी से रफ़ू न हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम