जिस की ख़ातिर मैं भुला बैठा था अपने आप को
अब उसी के भूल जाने का हुनर भी देखना
अताउल हक़ क़ासमी
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मुझ में थे जितने ऐब वो मेरे क़लम ने लिख दिए
मुझ में था जितना हुस्न वो मेरे हुनर में गुम हुआ
हकीम मंज़ूर
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ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर
ऐसा कोई हम ने हुनर न देखा
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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