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इलाहाबाद शायरी | शाही शायरी

इलाहाबाद

4 शेर

असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुँचा

अकबर इलाहाबादी




कुछ इलाहाबाद में सामाँ नहीं बहबूद के
याँ धरा क्या है ब-जुज़ अकबर के और अमरूद के

अकबर इलाहाबादी




तीन त्रिबेनी हैं दो आँखें मिरी
अब इलाहाबाद भी पंजाब है

इमाम बख़्श नासिख़




या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी हो
या बनारस में जहाँ हर घाट पर सैलाब है

क़मर जमील