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सुलेमान ख़ुमार शायरी | शाही शायरी

सुलेमान ख़ुमार शेर

3 शेर

इक ख़ौफ़-ए-बे-पनाह है आँखों के आर-पार
तारीकियों में डूबता लम्हा है सामने

सुलेमान ख़ुमार




मैं वाक़िफ़ हूँ तिरी चुप-गोइयों से
समझ लेता हूँ तेरी अन-कही भी

सुलेमान ख़ुमार




उम्र भर चल के भी पाई नहीं मंज़िल हम ने
कुछ समझ में नहीं आता ये सफ़र कैसा है

सुलेमान ख़ुमार