गुंजाइश-ए-दो-शाह नहीं एक मुल्क में
वहदानियत के हक़ की यही बस दलील है
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
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कुछ सुर्ख़ जो है रंग मिरे अश्क-ए-रवाँ का
शायद कोई टूटा दिल-ए-मजरूह का टाँका
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
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