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शाैकत वास्ती शायरी | शाही शायरी

शाैकत वास्ती शेर

4 शेर

बड़े वसूक़ से दुनिया फ़रेब देती रही
बड़े ख़ुलूस से हम ए'तिबार करते रहे

शाैकत वास्ती




मुझे तो रंज क़बा-हा-ए-तार-तार का है
ख़िज़ाँ से बढ़ के गुलों पर सितम बहार का है

शाैकत वास्ती




रविश रविश पे चमन के बुझे बुझे मंज़र
ये कह रहे हैं यहाँ से बहार गुज़री है

शाैकत वास्ती




'शौकत' हमारे साथ बड़ा हादिसा हुआ
हम रह गए हमारा ज़माना चला गया

शाैकत वास्ती