फ़ज़ा-ए-शहर बड़ी ख़ुश-गवार थी लेकिन
पलक झपकते ही कैसा अजीब मंज़र था
शफ़ीक़ आज़मी
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फ़ज़ा-ए-शहर बड़ी ख़ुश-गवार थी लेकिन
पलक झपकते ही कैसा अजीब मंज़र था
शफ़ीक़ आज़मी